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Sameer Wankhede ने Shah Rukh Khan की Red Chillies Entertainment और Netflix पर 2 करोड़ के मानहानी मुकदमे की फ़ाइल दायर की

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Sameer Wankhede ने Shah Rukh Khan की Red Chillies Entertainment और Netflix पर 2 करोड़ के मानहानी मुकदमे की फ़ाइल दायर की
Jonali Das 10 टिप्पणि

मानहानी मुकदमे की पृष्ठभूमि

पूर्व नशा नियंत्रण ब्यूरो (NCB) के ज़ोनल डायरेक्टर Sameer Wankhede ने सितंबर 2025 में दिल्ली हाईकोर्ट में एक बड़ी defamation suit दायर की। इस मुकदमे में उन्होंने Shah Rukh Khan के प्रोडक्शन हाउस Red Chillies Entertainment, स्ट्रिमिंग प्लेटफ़ॉर्म Netflix तथा X Corp, Google, Meta और RPG Lifestyle Media को उत्तरदायी ठहराया है। मूल शिकायत Aryan Khan की डायरेक्टorial डेब्यू वेब‑सीरीज़ ‘The Ba***ds of Bollywood’ को लेकर है, जिसे 18 सितंबर 2025 को राष्ट्रीय स्तर पर नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ किया गया था।

Wankhede का दावा है कि इस सीरीज़ में उनका चित्रण तथाकथित ‘मैलिशियस’ है और यह नशा‑रोधी एजेंसियों को भी बदनाम करने का इरादा रखता है। वह मानते हैं कि यह कार्य न केवल उनका व्यक्तिगत सम्मान धूमिल करता है, बल्कि आम जनता के बीच कानून‑प्रवर्तन संस्थाओं के प्रति भरोसा भी घटाता है।

क़ानूनी तर्क और अदालत की पूछताछ

मुकदमे की दायर करते समय Wankhede ने विशेष रूप से एक दृश्य का हवाला दिया, जहाँ एक पात्र ‘सत्यमेव जयते’ कहने के बाद घिनौना इशारा करता है, जिसे उन्होंने 1971 के ‘Prevention of Insults to National Honour Act’ के तहत आपराधिक माना। इस बयान के साथ ही वे यह भी argue करते हैं कि केस अभी भी मुंबई के स्पेशल NDPS कोर्ट में चल रहा है, इसलिए कोई भी सार्वजनिक टिप्पणी या चित्रण भ्रामक और अपमानजनक है।

दिल्ली हाईकोर्ट की जज पूरुषेंद्र कुमार कौरव ने इस बात पर सवाल उठाया कि क्या मामला दिल्ली में सुने जाने योग्य है। उन्होंने Wankhede से स्पष्ट करने को कहा कि वाकयी कारण (cause of action) कहाँ उत्पन्न हुआ और क्यों इसे राष्ट्रीय राजधानी में सुना जाना चाहिए। Wankhede की कानूनी टीम, वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप सेठी, ने दलील दी कि वेब‑सीरीज़ का प्रसारण और दर्शकों का उपभोग दिल्ली में भी होता है, इसलिए मानहानी का प्रभाव यहाँ मौजूद है।

कोर्ट ने Wankhede को अपना plaint संशोधित करने की हिदायत दी, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि कारण-कारण (cause of action) दिल्ली में उत्पन्न हुआ है। इस बीच, Wankhede ने यह भी कहा कि यदि अदालत उन्हें हर्जाने का आदेश देती है तो वह पूरे 2 करोड़ रुपये Tata Memorial Cancer Hospital को कैंसर रोगियों के उपचार के लिए दान करना चाहते हैं। यह कदम उनके दावे में एक सामाजिक पहलू जोड़ता है।

Wankhede की पत्नी, मराठी अभिनेत्री Kranti Redkar ने भी सोशल मीडिया पर कुछ गुप्त पोस्ट शेयर किए, जिनमें उन्होंने ‘ड्रग समस्याओं को हल्के में नहीं लेना चाहिए’ जैसे संकेत दिए। यह पोस्ट्स कई लोगों ने इस चल रहे मामले के संकेत के रूप में पढ़ा।

यह मुकदमा 2021 में Wankhede द्वारा Aryan Khan की नशे की कार्रवाई के बाद से खिंची हुई नाराजगी को फिर से उभारेगा। उस समय Wankhede ने Aryan Khan को NDPS एक्ट के तहत गिरफ्तार किया था, जिससे Khan परिवार और Wankhede के बीच तनाव बढ़ गया। अब यह कानूनी लड़ाई, सेलिब्रिटी संस्कृति, मीडिया के रचनात्मक अधिकार और कानून‑प्रवर्तन के बीच के जटिल संतुलन को उजागर करती दिखती है।

Jonali Das
Jonali Das

मैं समाचार की विशेषज्ञ हूँ और दैनिक समाचार भारत पर लेखन करने में मेरी विशेष रुचि है। मुझे नवीनतम घटनाओं पर विस्तार से लिखना और समाज को सूचित रखना पसंद है।

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टिप्पणि (10)
  • Arun Kumar
    Arun Kumar

    सितंबर 26, 2025 AT 22:24 अपराह्न

    ये सीरीज़ तो बस एक काल्पनिक कहानी है, असली जिंदगी का हिस्सा नहीं। अगर हर एक्टर या प्रोडक्शन हाउस को अपने फिक्शन के लिए कानूनी जिम्मेदार ठहराया जाएगा, तो हम सब डर के मारे कुछ भी नहीं बना पाएंगे।

  • Praveen S
    Praveen S

    सितंबर 28, 2025 AT 15:03 अपराह्न

    यह मुकदमा सिर्फ एक व्यक्ति के नाम के बारे में नहीं है - यह एक गहरी सांस्कृतिक टक्कर है: क्या कलाकारों को अपनी कला के जरिए समाज के अधिकारियों की आलोचना करने का अधिकार है? और क्या कानून प्रवर्तन के अधिकारियों को अपने कर्तव्यों के दौरान एक अछूता दर्शन बनाने का अधिकार है? ये सवाल भारतीय लोकतंत्र के दिल में बैठे हैं।

    हम अक्सर भूल जाते हैं कि फिल्में और शो दर्शकों को सोचने के लिए प्रेरित करते हैं - न कि उनके लिए सच्चाई बनने के लिए। अगर कोई पात्र ‘सत्यमेव जयते’ कहकर इशारा करता है, तो यह एक विरोधाभास है, एक टीका है - न कि एक आपराधिक कृत्य।

    कानून का उद्देश्य समाज की रक्षा करना है, न कि कला की आजादी को दबाना। अगर हम यही सोचने लगे कि ‘जो कुछ भी असहज करे, वह अपमानजनक है’, तो हम एक ऐसे समाज की ओर बढ़ रहे हैं जहाँ आलोचना अपराध है।

    वाकंढे साहब का निर्णय अदालत में जाने का उचित है, लेकिन उनका दान करने का विचार - टाटा मेमोरियल को - बहुत महान है। यह दर्शाता है कि उनका दिल अभी भी देश के लिए धड़क रहा है।

    हमें अपने व्यक्तिगत रूप से नाराजगी को अपने व्यक्तिगत रूप से हल करना चाहिए - न कि अपने नाम के लिए कानूनी शक्ति का इस्तेमाल करके।

    मीडिया के लिए भी एक जिम्मेदारी है - लेकिन यह जिम्मेदारी अपराध नहीं, जागरूकता है।

    हम जब भी किसी को ‘अपमान’ का आरोप लगाते हैं, तो अक्सर हम अपनी असुरक्षा को दूसरे के ऊपर थोप देते हैं।

    इस मामले में, दोनों पक्षों के पास अपना तर्क है - और अदालत का काम है कि वह इन दोनों के बीच न्याय का संतुलन बनाए।

    मैं नहीं चाहता कि कोई भी अधिकारी बदनाम हो, लेकिन मैं यह भी नहीं चाहता कि कोई भी कलाकार डर के मारे चुप हो जाए।

    हमारा समाज तब तक स्वस्थ नहीं होगा, जब तक हम अपनी भावनाओं को कानून के रूप में नहीं बदल देंगे।

    कला की आजादी के बिना, हमारी आत्मा भी बंद हो जाती है।

  • Gaurav Mishra
    Gaurav Mishra

    सितंबर 30, 2025 AT 09:13 पूर्वाह्न

    ये मुकदमा बेकार है।

  • Aayush Bhardwaj
    Aayush Bhardwaj

    अक्तूबर 2, 2025 AT 07:58 पूर्वाह्न

    अरे यार, ये लोग तो अपनी गलतियों के लिए दूसरों को दोष देने में माहिर हैं। Aryan Khan को गिरफ्तार किया था, अब उसके बारे में बनी सीरीज़ पर फिल्मी बाज़ार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं? बस एक नशे का मामला था, अब ये सब बड़ा बना रहे हैं।

    मानहानी? अगर तुम्हारा चित्रण तुम्हारे अपने काम के खिलाफ है, तो तुम्हारी खुद की नीति पर सोचो।

    कैंसर रोगियों को दान करने का बहाना बना रहे हो, लेकिन असल में तुम्हारा नाम ट्रेंड करना है।

  • Vikash Gupta
    Vikash Gupta

    अक्तूबर 3, 2025 AT 15:24 अपराह्न

    भाई, ये मामला सिर्फ कानून और कला का नहीं, बल्कि दिलों का भी है।

    एक तरफ एक अधिकारी जिसने अपनी जिंदगी के कुछ साल नशे के खिलाफ लड़े - दूसरी तरफ एक फिल्मी घराना जिसने दर्जनों फिल्मों में नशे के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाई।

    क्या ये दोनों एक दूसरे के विरोधी हैं? या ये दोनों एक ही समाज के दो पहलू हैं - एक जो नियम बनाता है, और एक जो उन नियमों को चुनौती देकर उन्हें बदलता है?

    मैं तो सोचता हूँ कि अगर ये सीरीज़ ने किसी को भी इस बात के बारे में सोचने पर मजबूर किया - कि क्या नशा एक अपराध है या एक समस्या - तो ये अपने आप में एक जीत है।

    वाकंढे साहब का दान करने का विचार मुझे बहुत पसंद आया। वो अपने दिल के रास्ते पर चल रहे हैं।

    और हाँ - अगर ये सीरीज़ ने आपको बदनाम किया है, तो शायद आपको खुद से पूछना चाहिए: क्या मैंने अपने काम के जरिए कभी किसी के दिल को छूया? या सिर्फ अपनी पावर का इस्तेमाल किया?

    हमारे देश में जब कोई अधिकारी बदनाम होता है, तो लोग उसे गुस्सा देते हैं - लेकिन जब कोई अभिनेता बदनाम होता है, तो लोग उसे बहादुर समझते हैं।

    ये दोहरा मानक हमारे समाज की असली बीमारी है।

    अगर आप अपने नाम के लिए लड़ रहे हैं, तो आप अपनी जिंदगी का एक अहम हिस्सा खो रहे हैं।

    अगर आप अपने काम के लिए लड़ रहे हैं - तो आप अपनी आत्मा के लिए लड़ रहे हैं।

    मैं आपको शुभकामनाएँ देता हूँ, चाहे आप कौन भी हों। 🙏

  • Anurag goswami
    Anurag goswami

    अक्तूबर 5, 2025 AT 01:17 पूर्वाह्न

    इस मुकदमे के बारे में सबसे दिलचस्प बात ये है कि अदालत ने पूछा - ‘कारण कहाँ उत्पन्न हुआ?’

    ये सवाल बहुत गहरा है।

    क्या कारण दिल्ली में उत्पन्न हुआ क्योंकि वहाँ लोगों ने शो देखा? या कारण मुंबई में उत्पन्न हुआ क्योंकि वहाँ सीरीज़ बनी?

    ये सवाल हमें बताता है कि आज के डिजिटल युग में, अपमान का स्थान एक जगह नहीं, बल्कि लाखों जगहों पर होता है।

    मुझे लगता है कि अगर वाकंढे साहब चाहते हैं कि उनका नाम बचे, तो उन्हें अपने काम के जरिए नाम बनाना चाहिए - न कि अदालतों के जरिए।

    हम सब अपने नाम के लिए लड़ते हैं।

    लेकिन असली नाम वो होता है जो लोग आपके बारे में बोलते हैं - जब आप वहाँ नहीं होते।

  • Deepak Vishwkarma
    Deepak Vishwkarma

    अक्तूबर 6, 2025 AT 14:53 अपराह्न

    ये सब बकवास है। जो भी भारतीय अधिकारी को बदनाम करता है, वो देशद्रोही है। इस सीरीज़ को तुरंत बंद कर देना चाहिए। नेटफ्लिक्स को भारत से बाहर निकाल देना चाहिए।

  • Saksham Singh
    Saksham Singh

    अक्तूबर 7, 2025 AT 11:06 पूर्वाह्न

    ये मुकदमा बिल्कुल वैसा ही है जैसे कोई बच्चा अपनी चाय का गिलास गिरा दे और फिर घर के बर्तन बेचकर अपनी चाय की लागत वापस ले ले।

    अरे भाई, ये सीरीज़ किसी के असली नाम से नहीं बनी - ये फिक्शन है। अगर आपको लगता है कि ‘सत्यमेव जयते’ कहकर इशारा करने वाला पात्र आप हैं, तो शायद आपको अपने जीवन के बारे में थोड़ा और सोचना चाहिए।

    क्या आपने कभी सोचा कि आपके जैसे अधिकारी अगर अपने आप को इतना महत्वपूर्ण समझते हैं, तो क्यों आपके जैसे लोगों को अभी तक एक बार भी टीवी पर नहीं दिखाया गया? क्यों आपके बारे में लोगों को बात करने का अवसर ही नहीं मिलता?

    ये मुकदमा आपकी असुरक्षा का दर्पण है।

    आप ने Aryan Khan को गिरफ्तार किया - तो आपको लगा कि आप एक नायक बन गए।

    अब जब एक फिल्म ने आपके चरित्र को एक टीका के रूप में दिखाया, तो आप ने दुनिया को बताना शुरू कर दिया कि ‘मैं नायक हूँ!’

    लेकिन दुनिया ने तो सिर्फ एक नाटक देखा।

    आप जो दान करने की बात कर रहे हैं - वो तो बहुत अच्छा है।

    लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि आपके जैसे लोगों के कारण ही नशे के मामलों में अक्सर अनुचित गिरफ्तारियाँ होती हैं?

    क्या आपने कभी एक नौजवान के घर जाकर देखा कि उसकी बहन अपने भाई को बचाने के लिए अपनी शादी के गहने बेच रही है?

    क्या आपने कभी उस बच्चे को देखा जिसने अपने पिता को बचाने के लिए अपना बैंक खाता बंद कर दिया?

    आपका मुकदमा आपके नाम के लिए है - न कि नशे के खिलाफ।

    और ये बात सब जानते हैं।

    तो अब आप जो दान कर रहे हैं - वो आपकी आत्मा के लिए है।

    लेकिन दुनिया जानती है - आपकी आत्मा के लिए दान करने से पहले, आपको अपने दिल को बदलना होगा।

  • mohit malhotra
    mohit malhotra

    अक्तूबर 7, 2025 AT 15:35 अपराह्न

    इस मुकदमे के अंदर एक गहरी सामाजिक विषमता छिपी हुई है - जिसे हम अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं।

    एक तरफ एक राष्ट्रीय स्तर का अधिकारी - जिसके पास राजनीतिक और संस्थागत समर्थन है - और दूसरी तरफ एक सार्वजनिक व्यक्ति - जिसकी पहचान उसकी कला और उसके दर्शकों के बीच बनती है।

    कानून का उद्देश्य न्याय करना है - लेकिन क्या ये न्याय दोनों पक्षों के लिए समान है?

    अगर एक सामान्य नागरिक ने एक फिल्म के बारे में एक टिप्पणी लिखी, तो क्या वह भी इस तरह का मुकदमा दायर कर सकता है?

    यहाँ एक विशेषाधिकार की बात हो रही है - एक ऐसा विशेषाधिकार जो केवल उन्हीं को मिलता है जिनके पास प्रभावशाली नेटवर्क है।

    वाकंढे साहब का अपने कानूनी टीम के साथ दिल्ली हाईकोर्ट में जाना - जिसका विषय एक ऑनलाइन सीरीज़ है - ये एक बहुत बड़ी रणनीति है।

    क्योंकि अगर आप एक फिल्म को बंद करवाना चाहते हैं, तो आपको उसके वित्तीय और व्यापारिक समर्थन को निशाना बनाना होगा - न कि केवल एक व्यक्ति को।

    अगर ये मुकदमा सफल हो गया, तो अगले वर्ष कोई भी फिल्ममेकर एक अधिकारी के चरित्र को दर्शाने से पहले एक दर्जन लॉयर्स को बुलाएगा।

    कला की आजादी एक अधिकार नहीं - ये एक सामाजिक आवश्यकता है।

    और अगर ये अधिकार बंद हो जाता है, तो हमारा समाज एक अनायास बन जाएगा - जहाँ कोई भी बात बोलने से पहले डर जाए।

    मैं वाकंढे साहब के दान के विचार को सराहता हूँ।

    लेकिन मुझे उम्मीद है कि उनका ये दान उनकी अपनी आत्मा के लिए हो - न कि उनके नाम के लिए।

  • Vikash Gupta
    Vikash Gupta

    अक्तूबर 7, 2025 AT 16:28 अपराह्न

    अगर ये सीरीज़ ने किसी को भी ये सोचने पर मजबूर किया कि ‘क्या हम अपने अधिकारियों को इतना अछूता बना रहे हैं?’ - तो ये सीरीज़ एक जीत है।

    और अगर वाकंढे साहब अपने दान के जरिए अपनी आत्मा को शांत करना चाहते हैं - तो उनके लिए ये एक शुभ संकेत है।

    मैं आपको शुभकामनाएँ देता हूँ। 🙏

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