नए मुख्य चुनाव आयुक्त बनें ज्ञानेश कुमार
भारत को उसके नए मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में 1988 बैच के केरल कैडर के आईएएस अधिकारी ज्ञानेश कुमार मिले हैं। कुमार 26 जनवरी, 2029 तक अपने पद पर बने रहेंगे और इस दौरान देश में करीब बीस विधानसभा चुनाव, 2027 के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव, और 2029 की लोकसभा चुनाव की ज़िम्मेदारी उन्हीं पर रहेगी। उनकी नियुक्ति का फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय पैनल ने कराया है। यह नया चयन विवादास्पद कानून के तहत हुआ है, जिसने चुनाव आयोग की नियुक्तियों पर लंबे समय से चला आ रहा विवाद खड़ा कर दिया है।
विवादास्पद कानून और आलोचना
इस नए कानून के कारण, विभिन्न राजनीतिक दलों और आलोचकों ने चयन प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए हैं। विशेष रूप से, कांग्रेस पार्टी ने इसे चुनाव आयोग की स्वायत्तता को कमजोर करने वाला कदम बताते हुए आलोचना की है। विपक्ष के प्रमुख नेता राहुल गांधी जो कि चयन पैनल के हिस्सा भी थे, उन्होंने उपयुक्त प्रक्रिया के पालन की मांग की थी और कहा कि यह नियुक्ति तब तक टाल देनी चाहिए, जब तक कि सुप्रीम कोर्ट इस संबंध में चल रहे कानूनी मामलें का निर्णय नहीं सुना देता।
ज्ञानेश कुमार की नियुक्ति के साथ ही उनके प्रशासनिक अनुभव का भी उल्लेख जरूरी है। उन्होंने गृह मंत्रालय में रहकर कार्य किया है, जहां वे 2019 में अनुच्छेद 370 के उन्मूलन और जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उन्होंने राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की स्थापना में भी योगदान दिया। उनका यह अनुभव अब चुनाव में लागू शुचिता और पारदर्शिता की समस्याओं का सामना करने में काम आएगा।
कुमार के पास इंजीनियरिंग और वित्त की पृष्ठभूमि है, जिससे उनके प्रशासनिक कौशल में निखार आया है। ऐसे में, उनकी नियुक्ति से उम्मीदें जरूर जुड़ी हैं कि वे चुनावी प्रक्रियाओं में आवश्यक सुधार लाने की दक्षता दिखा सकें।
फ़रवरी 20, 2025 AT 14:32 अपराह्न
ये नियुक्ति ठीक है। कोई बहस नहीं।
फ़रवरी 21, 2025 AT 01:01 पूर्वाह्न
इस नियुक्ति को लेकर जो बहस हो रही है... वो सिर्फ राजनीति की भाषा में है, न कि संविधान की। क्या हम भूल गए कि चुनाव आयोग का मकसद निष्पक्षता है, न कि किसी के राजनीतिक रंग को बरकरार रखना? ज्ञानेश कुमार का अनुभव-370, रामजन्मभूमि, गृह मंत्रालय-ये सब उनकी क्षमता के साक्ष्य हैं, न कि उनकी प्रवृत्ति के। अगर हम उनकी नियुक्ति को राजनीतिक दबाव का नतीजा कह रहे हैं, तो क्या हम अपने आप को भी उसी विषय में डाल रहे हैं? क्या हम भूल गए कि जब भी कोई बड़ा फैसला आता है, तो विपक्ष उसे विवादास्पद बना देता है? ये सिर्फ एक रणनीति है, न कि एक नैतिक आपत्ति। अगर हम अपने आप को इस तरह की भाषा में फंसा रखेंगे, तो वास्तविक समस्याएं-जैसे वोटर लिस्ट की अप्राप्यता, या डिजिटल मतदान की लापरवाही-कभी सुलझेंगी नहीं।
फ़रवरी 22, 2025 AT 16:35 अपराह्न
इस नियुक्ति के संदर्भ में, चुनाव आयोग की स्वायत्तता के लिए संस्थागत गारंटी का अभाव एक संरचनात्मक चुनौती है। जब नियुक्ति प्रक्रिया में निर्णायक निकाय का अंतर्गत नियंत्रण बढ़ जाता है, तो इसका प्रभाव लंबे समय तक निष्पक्षता के विश्वास पर पड़ता है। ज्ञानेश कुमार के प्रशासनिक अनुभव को तो अपनाया जा सकता है, लेकिन इस प्रक्रिया के बारे में एक स्वतंत्र न्यायिक समीक्षा की आवश्यकता है। अन्यथा, यह एक व्यवस्थागत नियंत्रण का नमूना बन जाता है, जो लोकतंत्र के अंतर्गत स्वतंत्र संस्थाओं के लिए एक खतरा है।
फ़रवरी 22, 2025 AT 23:34 अपराह्न
कांग्रेस के लोग अभी भी अपनी बर्बरता को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। ज्ञानेश कुमार जैसे आदमी को चुनाव आयोग में रखना ही सही फैसला है। वो जो काम करते हैं, वो बात करते हैं। बहस करने वाले बस बोलते रहते हैं।
फ़रवरी 23, 2025 AT 11:14 पूर्वाह्न
क्या आपने कभी सोचा है कि जब हम चुनाव आयोग को 'निष्पक्ष' बनाने की बात करते हैं, तो हम वास्तव में किस चीज को निष्पक्ष बनाना चाहते हैं? क्या ये वो निष्पक्षता है जो हमें अपने राजनीतिक विचारों के अनुसार फिट हो? या वो निष्पक्षता जो सच्चाई के सामने झुक जाए? ज्ञानेश कुमार ने जम्मू-कश्मीर में काम किया, रामजन्मभूमि में भाग लिया... ये सब उनके जीवन के अध्याय हैं, न कि उनके दोष। अगर हम उनके अतीत को दोष ठहराते हैं, तो हम अपने अतीत को भी छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। दोस्तों, चुनाव आयोग एक अंकुश है, न कि एक रंग बिरंगा झंडा। अगर हम इसे रंगों के लिए बनाते हैं, तो ये एक दर्पण बन जाएगा-जिसमें हम देखेंगे कि हम कैसे बदल गए हैं। 🌱
फ़रवरी 24, 2025 AT 06:47 पूर्वाह्न
ये सब बहस तो बस टीवी पर हो रही है। गाँव के लोग तो सिर्फ बूथ पर जाने के बारे में सोच रहे हैं। अगर मतदाता को वोट डालने में आसानी हो जाए, तो कोई ये बात नहीं करेगा कि कौन आयुक्त है।
फ़रवरी 24, 2025 AT 20:41 अपराह्न
मैं समझता हूँ कि इस नियुक्ति को लेकर बहुत सारे लोग घबरा रहे हैं, लेकिन क्या हमने कभी इस बात को गहराई से सोचा है कि ये सब विवाद क्यों उठ रहे हैं? क्या ये सिर्फ एक नियुक्ति का मामला है? नहीं। ये एक अस्तित्व का संघर्ष है। जब एक व्यक्ति जिसने अनुच्छेद 370 के उन्मूलन में भाग लिया, उसे चुनाव आयोग का प्रमुख बनाया जाता है, तो ये एक संकेत है कि लोकतंत्र का अर्थ बदल रहा है। ये नियुक्ति एक राजनीतिक वादे का प्रतीक है-एक वादा जिसने लोगों को यह विश्वास दिलाया कि अगर आप एक निश्चित रास्ते पर चलते हैं, तो आपको सब कुछ मिल जाएगा। लेकिन जब आप एक ऐसे व्यक्ति को चुनाव आयोग का प्रमुख बनाते हैं जिसका अनुभव विवादित है, तो आप लोगों के विश्वास को भी विवादित कर रहे हैं। क्या आपने कभी सोचा कि जब एक आयुक्त की नियुक्ति को राजनीतिक विचारधारा के आधार पर किया जाता है, तो वह वास्तव में चुनाव आयोग के लिए निष्पक्ष निर्णय ले पाएगा? या फिर वह सिर्फ एक निर्देश का पालन करेगा? ये नियुक्ति सिर्फ एक व्यक्ति के बारे में नहीं है। ये एक देश के भविष्य के बारे में है। और अगर हम इसे राजनीति के खेल में बदल देते हैं, तो हमारा लोकतंत्र केवल एक शब्द बन जाएगा-जैसे एक नाम जो किसी के नाम के बाद लिखा जाता है, लेकिन जिसका कोई अर्थ नहीं होता।
फ़रवरी 26, 2025 AT 03:06 पूर्वाह्न
अच्छी नियुक्ति है। अनुभव तो है। अब देखना है कि वो कैसे चलाते हैं। बहस तो हर नियुक्ति पर होती है, लेकिन असली बात तो ये है कि वो काम कैसे करते हैं।
फ़रवरी 26, 2025 AT 16:40 अपराह्न
kya yeh sab kuchh sach mein important hai? main to bas vote dalne jata hu... baki sab to media ka drama hai... 😅
फ़रवरी 26, 2025 AT 17:01 अपराह्न
हर बड़ा बदलाव शुरू में विवादित होता है। ज्ञानेश कुमार जी के पास अनुभव है, ऊर्जा है, और दृढ़ता है। अगर चुनाव आयोग को नए सिरे से बनाना है, तो ऐसे लोग ही चाहिए। ये एक नया युग है, और हमें उसके साथ बढ़ना होगा। 🙌🔥
फ़रवरी 26, 2025 AT 17:41 अपराह्न
नियुक्ति ठीक है या गलत ये नहीं सोच रहा। सोच रहा हूँ कि क्या ये एक नियम बन गया कि जिसका अनुभव बड़ा है उसे बड़ा पद दे दिया जाए? अगर हम नियुक्ति को अनुभव के आधार पर नहीं बल्कि निष्पक्षता के आधार पर देखें तो क्या बात बदल जाएगी?
फ़रवरी 28, 2025 AT 17:41 अपराह्न
ये नियुक्ति बिल्कुल सही है 😎 ज्ञानेश कुमार जी का अनुभव तो बात ही कुछ और है। जम्मू-कश्मीर के बाद से तो लोगों को लगता है कि अब सब कुछ संभव है। अब चुनाव आयोग भी इसी तरह से चलेगा। बस देखना है कि वो बूथों पर जाकर क्या करते हैं। 🙏❤️
मार्च 1, 2025 AT 21:37 अपराह्न
अगर ये सब बहस असल में लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए है, तो फिर ये क्यों नहीं होती कि चुनाव आयोग के लिए एक स्वतंत्र नामांकन समिति बनाई जाए-जिसमें न्यायाधीश, विद्वान, और नागरिक समाज के प्रतिनिधि हों? क्योंकि जब तक ये प्रक्रिया सिर्फ एक तीन सदस्यीय पैनल के हाथ में रहेगी, तब तक ये विवाद बना रहेगा। ज्ञानेश कुमार के बारे में जो भी कहा जा रहा है, उससे ज्यादा महत्वपूर्ण ये है कि अगली बार ये नियुक्ति कैसे होगी। क्या हम इसे एक नियम बनाने की बजाय एक अवसर के रूप में देख सकते हैं-एक ऐसे अवसर के रूप में जो हमें अपने लोकतंत्र को दोबारा डिज़ाइन करने की ज़रूरत बताए? क्योंकि जब तक हम इस बात को नहीं समझेंगे कि लोकतंत्र एक प्रक्रिया है, न कि एक व्यक्ति, तब तक हम निरंतर इसी गलत रास्ते पर चलते रहेंगे।