बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों के कोटे को लेकर घातक हिंसा
बांग्लादेश में हाल ही में सरकारी नौकरियों के लिए वर्तमान कोटा प्रथा के खिलाफ छात्र आंदोलनों ने एक विध्वंसक मोड़ ले लिया है। ये विरोध प्रदर्शन ढाका विश्वविद्यालय और अन्य प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों से शुरु हुआ और जल्द ही राष्ट्रीय स्तर पर फैल गया। छात्रों के बीच नाराजगी इस बात को लेकर है कि कैसे कोटा प्रणाली उन्हें मेरिट के आधार पर अवसरों से वंचित करती है। उनका कहना है कि इस प्रणाली से एक स्थाई असमानता और पक्षपात का माहौल बनता है।
बांग्लादेश में वर्तमान कोटा प्रणाली के तहत सरकारी नौकरियों का एक बड़ा हिस्सा समाज के विशिष्ट वर्गों के लिए आरक्षित है। इनमें 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के नायकों के वंशज, महिलाएं, विभिन्न जातीय अल्पसंख्यक और विकलांग व्यक्ति शामिल हैं। ये कोटा प्रणाली एक समय बांग्लादेश की सामाजिक संरचना की असमानताओं को स्वीकार करने और उन्हें संतुलित करने के लिए बनाई गई थी, लेकिन समय के साथ यह प्रणाली विवादों का कारण बन गई है।
आंदोलन के छात्र नेता इस बारे में जोर देते हैं कि यह कोटा प्रणाली प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रशासन से जुड़े व्यक्तियों को अनुचित लाभ पहुंचाने का कार्य करती है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार इस प्रणाली को निष्पक्ष और पारदर्शी नहीं रख पा रही है, और यह केवल कुछ कुलीन वर्गों के लिए लाभकारी साबित हो रही है।
सरकारी कार्रवाई और हिंसा की घटनाएं
2018 में भारी सार्वजनिक विरोध के बाद, सरकार ने इस कोटा प्रणाली को समाप्त कर दिया था, लेकिन हाल ही में एक अदालत का फैसला इसे पुनः स्थापित करने का आदेश दिया है। इस फैसले के बाद देशभर में छात्रों का आक्रोश उबल पड़ा और उन्होंने जोरदार विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। विरोध प्रदर्शन में जबरदस्त हिंसा होने लगी जिसमें कई छात्र और सुरक्षाकर्मी घायल हुए।
प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने कुछ बयान में छात्रों को 1971 के दुश्मनों के साथ सहयोगियों के समान संबोधित किया, जिसके बाद से छात्रों का गुस्सा और भड़क गया। छात्र नेताओं ने इसे अपमानजनक और अस्वीकार्य बताया है और इसे लेकर और अधिक हिंसा भड़क उठी।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
इस हिंसा को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी चिंतित है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने बांग्लादेश की सरकार से अपील की है कि वह इस मुद्दे को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाएं और सुनिश्चित करें कि छात्रों को किसी भी प्रकार का नुकसान न हो।
गंभीर होते हालात को देखते हुए, सरकार ने अतिरिक्त सुरक्षाबल तैनात कर दिए हैं ताकि अशांति को नियंत्रित किया जा सके। हालाँकि, छात्रों की मांगें अभी भी बनी हुई हैं और वे अपनी लड़ाई से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं। उनकी मांग है कि नौकरियों में भर्तियों के लिए केवल मेरिट आधारित प्रणाली लागू हो।
ज़मीन पर हालात
धरनों, रैलियों और निरंतर चलने वाले प्रदर्शनों की वजह से बांग्लादेश के कई हिस्सों में जन जीवन प्रभावित हुआ है। ढाका और अन्य बड़े शहरों में दुकानों, शिक्षण संस्थानों आदि को बंद रखने का आदेश दिया गया है। महिलाओं और बच्चों सहित आम नागरिकों को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
इस दौरान, कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के साथ भिड़ंत के दौरान, कुछ छात्र गम्भीर रूप से घायल हो गए हैं। लेकिन न तो सरकार की तरफ से और न ही आंदोलनकारी छात्रों की ओर से किसी प्रकार के समाधान का संकेत मिला है।
आगे का रास्ता?
बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों के कोटे के मुद्दे ने एक गंभीर मोड़ ले लिया है। यदि समय रहते इस मुद्दे का समाधान नहीं निकाला गया, तो यह देश की स्थिरता और समृद्धि के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। अब देखना यह है कि सरकार और छात्र नेताओं के बीच मुद्दे को सुलझाने के लिए किस प्रकार के प्रयास किए जाते हैं।
छात्र नेता चाहते हैं कि सरकार जल्दी से जल्दी इस कोटा प्रणाली को समाप्त करे और मेरिट आधारित प्रणाली को लागू करे। वहीं, सरकार का कहना है कि वह इस मुद्दे पर विचार-विमर्श कर रही है और समाधान की दिशा में कदम उठा रही है।
अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि दोनों पक्ष इस मुद्दे को कैसे संभालते हैं और क्या देश में एक बार फिर से शांति और स्थिरता लौट पाएगी?