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सौर सेल उत्पादन: कैसे बनता है सोलर पैनल?

जब हम छत पर लगे सोलर पैनलों को देखते हैं, तो अक्सर सोचना पड़ता है कि ये छोटे‑छोटे ब्लॉक किस तरह तैयार होते हैं। असल में प्रक्रिया बहुत जटिल नहीं होती—अगर आप कदम‑दर‑कदम देखेंगे तो समझ आएगा। सबसे पहले सिलिकॉन की रॉ मेटेरियल (कच्चा सिलिकॉन) को साफ़ किया जाता है, फिर इसे पिघला कर बड़े‑बड़े इनगॉट्स बनाते हैं। ये इनगॉट्स बाद में पतले-पतले वेफ़र में काटे जाते हैं, जिससे सौर सेल की बेस प्लेट तैयार हो जाती है।

डोपिंग और एंटी‑रेफ्लेक्ट कोटिंग

वेफ़र पर दो प्रकार के डॉपेंट (जैसे फॉस्फोरस और बोरॉन) लगाते हैं ताकि इलेक्ट्रॉन का प्रवाह आसान हो। इस प्रक्रिया को ‘डोपिंग’ कहते हैं। इसके बाद एक पतली एंटी‑रेफ्लेक्ट कोटिंग जोड़ते हैं, जिससे सूर्य की रोशनी जितना अधिक संभव हो सेल में प्रवेश करे। फिर छोटे‑छोटे धातु के संपर्क (जॉइंट) बनाते हैं—एक पॉज़िटिव और दूसरा नेगेटिव। इन जॉइंट्स से ही बिजली बाहर निकलती है।

असेंबली और टेस्टिंग

डोप्ड वेफ़र को एक साथ जोड़कर मॉड्यूल बनाते हैं। चार या छह सेलों को स्ट्रिंग में सिरीज़ में लगाकर वोल्टेज बढ़ाया जाता है, फिर कई ऐसी स्ट्रिंग्स को पैरलेल में जोड़ते हैं ताकि करंट बढ़े। इस पूरी असेंबली के बाद हर पैनल का टेस्ट किया जाता है—वोल्टेज, करंट और दक्षता जांची जाती है। जो मानकों पर खरा उतरते हैं, उन्हें ही अंतिम पैकेजिंग के लिए भेजा जाता है।

भारत में सौर उत्पादन की स्थिति

पिछले पाँच सालों में भारत ने सोलर पैनल बनाने वाले फैक्ट्री का विस्तार तेज़ी से किया है। गुजरात, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बड़े‑बड़े प्लांट खुले हैं। अब भारत के पास लगभग 15 GW की निर्मित क्षमता है, जो घरेलू मांग को काफी हद तक पूरा कर रही है। सरकारी नीतियों—जैसे फेडरल सोलर मिशन और सब्सिडी—ने निवेशकों को आकर्षित किया है, इसलिए नई टियरिंग लाइनें रोज़ बनती दिखती हैं।

लेकिन कुछ चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। सिलिकॉन वॉफ़र की कीमतों में उतार‑चढ़ाव, कुशल तकनीशियन की कमी और गुणवत्ता नियंत्रण पर लगातार नजर रखना प्रमुख मुद्दे हैं। इनको हल करने के लिए कई कंपनियों ने ऑटोमेशन बढ़ाया है और प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए हैं।

सौर सेल उत्पादन का भविष्य उज्ज्वल दिख रहा है। अब सिर्फ बड़े प्रोजेक्ट ही नहीं, छोटे घरों की छत पर भी किफायती पैनलों को लगाना आसान हो गया है। नई पीढ़ी के मोड्यूल—जैसे पेरोव्स्काइट और टेंसर‑फ्लेक्सिबल पैनल—जल्द बाजार में आएँगे, जिससे दक्षता बढ़ेगी और लागत घटेगी। यदि आप सौर ऊर्जा को अपनाना चाहते हैं, तो स्थानीय निर्माता से खरीदना सबसे बेहतर विकल्प है; इससे लॉजिस्टिक खर्च कम होता है और भारत की निर्माण शक्ति का समर्थन भी मिलता है।

तो अब जब आप अगली बार सोलर पैनल देखेंगे, तो इस प्रक्रिया को याद रखें—कच्चे सिलिकॉन से लेकर असेंबली तक हर कदम में तकनीकी समझ और मेहनत जुड़ी होती है। यही कारण है कि सौर ऊर्जा न सिर्फ पर्यावरण के लिए बल्कि हमारे बजट के लिए भी फायदेमंद बन रही है।

टाटा पावर के शेयर में 5% की तेजी, सहायक कंपनी टीपी सोलर ने तमिलनाडु में सौर सेल उत्पादन शुरू किया
Jonali Das 0

टाटा पावर के शेयर में 5% की तेजी, सहायक कंपनी टीपी सोलर ने तमिलनाडु में सौर सेल उत्पादन शुरू किया

टाटा पावर के शेयर में 5% की बढ़ोतरी हुई जब इसकी सहायक कंपनी टीपी सोलर ने तमिलनाडु के तिरुनेलवेली में स्थित नए प्लांट में सौर सेल का वाणिज्यिक उत्पादन शुरू किया। यह 4.3 GW की क्षमता वाला प्लांट भारत का सबसे बड़ा सिंगल-लोकेशन सौर सेल और मॉड्यूल प्लांट है।