रूस ने अपने पाँचवीं पीढ़ी के Su-57 फाइटर को ज़िर्कोन हाइपरसोनिक मिसाइल से लैस कर एक नए जमाने की क्षमताएँ पैदा की हैं। भारत इस पैकेज को स्थानीय असेंबली और पूरी तकनीकी ट्रांसफ़र के साथ खरीदने पर विचार कर रहा है। अगर सौदा पूरा हुआ तो भारत के पास क्षेत्र में पहले‑से‑बड़ी प्रहार क्षमता होगी, जिससे चीन‑पाकिस्तान के साथ शक्ति संतुलन बदल सकता है। इस लेख में तकनीकी विवरण, रणनीतिक प्रभाव और संभावित चुनौतियों की चर्चा है।
हाइपरसोनिक मिसाइल क्या है?
जब हम बात करते हैं हाइपरसोनिक मिसाइल, एक ऐसी रॉकेट प्रणाली जो पाँच मैक (5 Mach) से अधिक गति से उड़ती है और अत्यधिक चपलता रखती है. इसे अक्सर सुपरसोनिक हथियार कहा जाता है, और इसका प्रयोग तेज़‑तर्रार युद्ध परिदृश्य में बढ़ते खतरे को देखते हुए कई देशों की रक्षा रणनीति में हो रहा है। अब हम इस तकनीक के कुछ मुख्य घटकों पर नज़र डालते हैं।
रक्षा मंत्रालय, देश के हथियार विकास और तैनाती का प्रमुख नियामक हाइपरसोनिक मिसाइल के विकास को तेज़ करने में मुख्य भूमिका निभाता है। वह रडार सिस्टम, उच्च‑रिज़ॉल्यूशन ट्रैकिंग उपकरण और प्रोपल्शन तकनीक, स्क्रैचिंग या स्क्रैब रॉकेट इंजन के अनुसंधान को फंड देता है ताकि मिसाइल की रेंज और सटीकता बढ़े। इन तीनों घटकों के बीच सीधा संबंध है: बेहतर प्रोपल्शन से अधिक गति, और तेज़ रडार से अचूक लक्ष्य निर्धारण।
हाइपरसोनिक मिसाइल के प्रमुख पहलू
हाइपरसोनिक मिसाइल गति के मामले में पारम्परिक मिसाइल से कई गुना आगे है; पाँच मैक से ऊपर की गति से यह प्रतिवर्ती रडार या एंटी‑मिसाइल सिस्टम को चकमा दे सकती है। इस गति को हासिल करने के लिए प्लाज़्मा प्रोपल्शन, उच्च ऊर्जा वाले गैस के दाब से उत्पन्न थ्रस्ट का उपयोग किया जाता है। तेज़‑तर्रार युद्ध में रक्षा रणनीति, विपरीत शक्ति पर तेज़ प्रहार बदलती है, क्योंकि लक्ष्य तक पहुँचने का समय धड़की जाता है। इसी कारण कई देशों ने अब इस तकनीक को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा का अहम स्तंभ बना लिया है।
तकनीकी चुनौतियों में गर्मी‑से‑सामना, सामग्री‑विज्ञान और सटीक नेविगेशन शामिल हैं। एयरोस्पेस इंजीनियर कॉम्पोजिट सामग्री, हल्की लेकिन अत्यधिक ताप‑सहनशील एलॉय पर काम कर रहे हैं, ताकि ट्रैवल के दौरान ढांचा विफल न हो। साथ ही, कृत्रिम बुद्धिमत्ता‑आधारित मार्ग‑निर्धारण प्रणाली लक्ष्य‑पर्याप्ति की शुद्धता को बढ़ाती है। इन सभी पहलुओं का सफल हो जाना हाइपरसोनिक मिसाइल को वैश्विक रक्षा मंच पर एक गेम‑चेंजर बनाता है।
अभी तक भारत, रूस, चीन और अमेरिका जैसी प्रमुख शक्ति इन तकनीकों में भारी निवेश कर रही हैं। कई परीक्षणों से पता चला है कि लगातार सुधार के साथ रेंज, पेलोड क्षमता और कम‑सिग्नेचर प्रोफ़ाइल में वृद्धि हुई है। इस प्रतिस्पर्धी माहौल में, रक्षा मंत्रालय नई नीतियों और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को भी गति दे रहा है, ताकि घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिले और विदेशी निर्भरता कम हो। यही कारण है कि हाइपरसोनिक मिसाइल को अब केवल भविष्य का प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि वास्तविक ऑपरेशनल उपकरण माना जा रहा है।
नीचे आप विभिन्न समाचार लेख पाएँगे जो हाइपरसोनिक मिसाइल के परीक्षण, अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा, और भारतीय रक्षा में इसकी संभावित भूमिका से जुड़े हैं। यह संग्रह आपको इस तेज़‑तर्रार तकनीक के वर्तमान परिदृश्य और भविष्य की दिशा समझने में मदद करेगा।