रूसी तकनीक का भारत में प्रवेश: मुख्य बिंदु
रूस ने हालिया वर्षों में Su-57 स्टेल्थ फाइटर को अपने सबसे उन्नत हाइपरसोनिक हथियार, 3M22 ज़िर्कोन, के साथ जोड़ा है। मूल रूप से नौसेना‑आधारित इस स्क्रैंजेट‑प्रौद्योगिकी वाला मिसाइल अब एयरोनॉटिकल प्लेटफ़ॉर्म से लॉन्च किया जा सकता है, जिससे फाइटर की रेंज और लेटेंसी दोनों में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। ज़िर्कोन मैक 9 तक की गति (लगभग 9 600 km/h) हासिल करता है और 1 000 km से अधिक की पायादार रेंज रखता है। इस गति पर मौजूदा एंटी‑एयर सिस्टम को पकड़ना लगभग असंभव बन जाता है।
रूसी एयरोस्पेस फ़ोर्सेज़ के उप‑कमांडर‑इन‑चिफ़ लेफ्टीनेंट जनरल एलेक्सांद्र मैक्सिम्टसेव ने बताया कि Su-57 में अब न केवल ज़िर्कोन, बल्कि परमाणु‑सुविधायुक्त Kh‑102 क्रूज मिसाइल भी स्थापित है। ऐसी दोहरी क्षमताएँ फाइटर को निचले और ऊँचे दोनों स्तर पर स्तरीय प्रहार करने की अनुमति देती हैं। भारत इस तकनीक को अपने हवाई बेड़े में शामिल करने के लिए रूस के साथ विस्तृत वार्ता कर रहा है।
दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन पर संभावित असर
यदि भारत Su-57E, यानी निर्यात‑संस्करण, को 180 तक की संख्या में खरीद लेता है और ज़िर्कोन को भी पूरी तरह से प्राप्त कर लेता है, तो क्षेत्र में प्रहार शक्ति का समीकरण पूरी तरह बदल जाएगा। स्टेल्थ तकनीक फाइटर को रडार के चाप से बाहर रखती है, जबकि सुपरक्रूज़ क्षमता बिना आफ्टरबर्नर के उच्च गति रखती है। इस सन्दर्भ में ज़िर्कोन एक ‘भयावह हथौड़ा’ बन जाता है—रिवर्स‑एरिया में प्रवेश कर बारी‑बारी से लक्ष्य को तब तक मारता है जब तक बचाव प्रणाली प्रतिक्रिया नहीं कर पाती।
चीन और पाकिस्तान दोनों के लिए ये समाचार सख्त चेतावनी हैं। ज़िर्कोन का समुद्र‑सकिंग प्रोफ़ाइल, जो समुद्री सतह के बहुत निकट उड़ता है, समुद्री लक्ष्यों—जैसे विमानवाहक पोत और प्रमुख डेस्ट्रॉयर—के लिए ख़तरे का नया स्तर पेश करता है। भारतीय वायु‑सेना इस हथियार को दूरस्थ समुद्री अड्डों या आगे की नौसैनिक बेस का निरस्त्रीकरण कर सकती है, बिना बमबारी के प्रत्यक्ष संपर्क बनाए।
सिर्फ समुद्री ही नहीं, ज़िर्कोन की तेज़ गति और लंबी दूरी का मतलब है कि भारत समय-संवेदनशील लक्ष्यों—जैसे कमांड‑कंट्रोल सेंटर, रडार स्टेशन, या अग्रिम बिंदु पर तैनात एंटी‑एयर डिफेंस—पर भी सेकेंड में प्रहार कर सकता है। इसके अलावा, यदि मिसाइल में परमाणु वार्पेट लगाया जाए तो यह रणनीतिक स्तंभ को भी बदल देगा, जिससे क्षेत्र में निरोधक शक्ति को नया रूप मिलेगा।
यह तकनीकी उन्नति पश्चिमी देशों के समानांतर भी देखी जा रही है, लेकिन वर्तमान में केवल रूस‑अमेरिका की लड़ाई में ही ज़िर्कोन जैसी हाइपरसोनिक एयरो‑ड्रॉपेड क्षमताएँ मायने रखती हैं। अमेरिका का SM‑6 या यू‑2 जैसे सिस्टम ज़िर्कोन की गति को नहीं पकड़ पाते। इसलिए भारत के लिए यह सौदा न सिर्फ सैन्य बढ़त बल्कि तकनीकी स्तर पर भी एक बड़ी छलांग बन सकता है।
सौदे की आर्थिक और लॉजिस्टिक पक्ष भी आसान नहीं है। फाइटर के जीवन‑चक्र में लगभग 500 इंजनों की आवश्यकता होगी, जिसका उत्पादन और रख‑रखाव भारतीय एयरोस्पेस उद्योग के लिये एक बड़ा अवसर है, पर साथ ही चुनौती भी। पूर्ण तकनीकी ट्रांसफ़र, स्थानीय असेंबली और निर्यात अधिकारों की मांग भारत की स्वायत्तता को बढ़ाएगी, लेकिन इसके लिए बड़ी रकम और दीर्घकालिक सप्लाई चेन की जरूरत होगी।
सारांश में, यदि भारत इस पैकेज को सुरक्षित कर लेता है, तो वह दक्षिण एशिया में कुछ ही देशों में से एक होगा जिसके पास हाइपरसोनिक एअरलॉन्च सिस्टम कार्यशील रूप में होगा। यह न केवल निरोधक क्षमता को सुदृढ़ करेगा, बल्कि क्षेत्र में शक्ति संतुलन को भी नई दिशा देगा। रणनीतिक विचारधारा के लिहाज़ से, यह कदम भारत को तकनीकी महत्त्व के साथ साथ भू‑राजनीतिक महत्त्व भी प्रदान करेगा, जिससे भविष्य में किसी भी संभावित संघर्ष में प्रस्तावित प्रतिशोधी शक्ति की एक स्पष्ट रेखा स्थापित होगी।