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गुरु ग्रह: जुपिटर के पहलू और भारत में उसका महत्व

जब हम गुरु ग्रह, सौरमंडल का पाँचवाँ सबसे बड़ा ग्रह, गोले के आकार में बृहस्पति के समान, लेकिन अपने अद्वितीय ध्रुवीय गति और भौगोलिक विशेषताओं के कारण विशेष स्थान रखता है, अन्य नाम जुपिटर के रूप में भी जाना जाता है। इसे अक्सर ज्यूपिटर कहा जाता है। इसके साथ निकटता से जुड़े दो प्रमुख खगोलीय इकाइयाँ हैं: सूर्य, जो गुरुत्वाकर्षण की मुख्य शक्ति प्रदान करता है, और शनि, जो कक्षीय दूरी में गुरु ग्रह के बाद दूसरा बड़ा गैस दानव है। यह त्रिकोण खगोल विज्ञान के मूलभूत संरचना को दर्शाता है, जहाँ प्रत्येक ग्रह का आपसी प्रभाव सौरमंडल के संतुलन को बनाये रखता है।

गुरु ग्रह का व्यास लगभग १४३,००० किलोमीटर है, यानी यह पृथ्वी से लगभग ११ गुना बड़ा है। इसका भार १.९×१०³⁰ किलोग्राम है, जो सभी अन्य ग्रहों का २½ गुना वजन रखता है। इन आँकड़ों से स्पष्ट होता है कि गुरु ग्रह मात्र एक बड़ा गैस दानव नहीं, बल्कि कणों और गैसों का भौतिकी का प्रयोगशाला है। उसके पास ७९ ज्ञात उपग्रह हैं, जिनमें सबसे बड़ा गैनिमीड है, जिसका आकार चंद्रमा से भी बड़ा है। गुरुत्वाकर्षण के कारण शनि के समान, गुरु ग्रह की वर्तुल गति में छोटे विचलन होते हैं, जिससे शनि के साथ कक्षीय अनुनाद बनता है।

खगोल विज्ञान के विशेषज्ञ इस बात पर जोर देते हैं कि खगोल विज्ञान, जो ब्रह्मांडीय वस्तुओं के अध्ययन को दर्शाता है, को सही उपकरणों की आवश्यकता होती है। टेलिस्कोप, रेडियोएरे और अंतरिक्ष मिशन जैसे जुपिटर इओ और जुपिटर क्लॉड ने गुरु ग्रह की जटिल वायुमंडलीय संरचना को उजागर किया है। भारत भी इस दिशा में कदम बढ़ा रहा है; इस साल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने गुरु ग्रह की सतहीय तापमान को मापने के लिये एक छोटा यान प्रेषित करने की योजना घोषित की है। यह मिशन न केवल वैज्ञानिक डेटा देगा, बल्कि विद्यार्थियों को अंतरिक्ष विज्ञान में रुचि जगाएगा।

भौतिकी से परे गुरु ग्रह का भारतीय संस्कृति में भी खास स्थान है। ज्योतिष शास्त्र में गुरु को शुभता, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का प्रतीक माना जाता है। विशेषकर गुरु शनि युग में, कई लोग इस ग्रह को धन‑संपत्ति और शिक्षा से जोड़ते हैं। कई भारतीय शास्त्र ग्रन्थों में गुरु ग्रह की गति को वैदिक गणनाओं से मिलाने की कोशिश की गई है, जिससे भविष्यवाणी और समय निर्धारण में मदद मिलती है। इसलिए समाचार में गुरु ग्रह के संक्रमण, राशि चक्र में परिवर्तन या विशेष ग्रहण को अक्सर प्रमुखता दी जाती है।

विज्ञान के दृष्टिकोण से गुरु ग्रह के सबसे उल्लेखनीय विशेषताओं में से एक है उसकी महाशक्ति वाली आँधियाँ। महान लाल धब्बा, जो एक सुपर‑टॉर्नेडो जैसा है, लगभग दो सौ साल में एक बार पुनः विकसित होता है। ये आँधियाँ न केवल वायुमंडलीय गतिविज्ञान को प्रभावित करती हैं, बल्कि सूर्य से आने वाली ऊर्जा को पकड़कर उसके क्लाउड लेयर को बदल देती हैं। इन प्रक्रियाओं का अध्ययन करके वैज्ञानिक सौर प्रकाश के प्रभाव को समझते हैं और पृथ्वी के जलवायु मॉडल में सुधार लाते हैं। यही कारण है कि कई अंतरराष्ट्रीय जर्नल में गुरु ग्रह पर नवीनतम रिसर्च प्रकाशित होती है, जिससे हम अपने ग्रह के भविष्य को बेहतर ढंग से देख पाते हैं।

हमारी वेबसाइट ‘समाचार पर्दे’ पर हर दिन विभिन्न क्षेत्रों की खबरें आती हैं—स्पोर्ट्स टूर्नामेंट, शेयर बाजार, तकनीकी अपडेट और शैक्षिक सुधार। इस विविधता के बीच भी विज्ञान का रंग चमकता रहता है; चाहे वह अंतरिक्ष मिशन की घोषणा हो या शैक्षणिक संस्थानों में खगोल विज्ञान के कोर्स शुरू होना, सभी खबरें हमारे पाठकों को जुड़ाव और ज्ञान देती हैं। आज आप इस पेज पर गुरु ग्रह से जुड़ी जानकारी के कई पहलू देखेंगे—भौतिकी, सांस्कृतिक महत्व, नवीनतम अनुसंधान और भारत की अंतरिक्ष योजनाएँ। यही व्यापक दृष्टिकोण हमें इस अद्भुत ग्रह को समझने में मदद करता है।

आगे आप नीचे सूचीबद्ध लेखों में गुरु ग्रह की वैज्ञानिक खोजों, भारतीय ज्योतिषीय व्याख्याओं, ISRO के आगामी मिशनों और अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों के अपडेट को विस्तृत रूप से पढ़ पाएँगे। इन लेखों में बताया गया है कि कैसे गुरुत्वाकर्षण, वायुमंडलीय गतिशीलता और ग्रहीय संरेखण हमारे दैनिक जीवन में अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालते हैं। पढ़ने के बाद आप न सिर्फ गुरु ग्रह के बारे में जानेंगे, बल्कि यह भी समझेंगे कि यह ग्रह हमारे ब्रह्मांडीय समझ को कैसे आकार देता है।

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