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सुप्रीम कोर्ट ने CTET को अनिवार्य किया, UPPSC LT पदों में छूट पर सुनेगा 11 सितंबर को कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने CTET को अनिवार्य किया, UPPSC LT पदों में छूट पर सुनेगा 11 सितंबर को कोर्ट
Jonali Das 1 टिप्पणि

जब सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया ने 1 सितंबर 2025 को Anjuman Ishaat‑e‑Taleem Trust v. State of Maharashtra मामले में अपना ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाया, तो पूरे देश के शिक्षकों ने एक ही बात महसूस की: CTET अब सिर्फ प्रवेश परीक्षा नहीं, बल्कि पदोन्नति और नौकरी बनाए रखने की शर्त बन गया है। इस फैसले का असर लाखों सरकारी, सहायता प्राप्त और निजी‑स्कूल के शिक्षकों पर पड़ेगा, जिसमें उत्तर प्रदेश में उपर्युक्त सार्वजनिक सेवा आयोग (UPPSC) के LT ग्रेड पदों का विवाद भी शामिल है।

कानूनी पृष्ठभूमि और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट की पीटी (पीपी) में जस्टिस दीपंकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन ने यह स्पष्ट किया कि TET/CTET अनिवार्य है, चाहे शिक्षक 2011‑की नीतियों से पहले नियुक्त हुए हों। उन्होंने दो मुख्य शर्तें निर्धारित कीं:

  • यदि शिक्षक के पास सेवानिवृत्ति तक पाँच साल से कम समय बचा है, तो उसे TET नहीं देना पड़ेगा, पर पदोन्नति के लिए परीक्षा पास करनी अनिवार्य होगी।
  • यदि पाँच साल से अधिक शेष है, तो दो साल के भीतर TET पास करना होगा, नहीं तो अनिवार्य सेवानिवृत्ति या पदच्युत किया जा सकता है।

यह दिशा‑निर्देश मुंबई स्थित बॉम्बे हाई कोर्ट के दो‑बेंच निर्णय (Justice Ravindra V. Ghuge & Justice Gautam A. Ankhad, 16 सितंबर 2025) के बाद आया, जिसने बताया कि 1 सितंबर 2025 तक CTET पास करने वाले शिक्षक अपनी सेवा जारी रख सकते हैं, जबकि बाकी को दो साल का ग्रेस‑पीरियड मिलेगा।

राज्य‑स्तर के हाई‑कोर्ट के फैसलों का टकराव

उत्तर प्रदेश में 2017 में अल्लाहाबाद हाई कोर्ट ने TET को प्रोन्नति की शर्त बना दिया, जिससे कई नौसिखिया शिक्षक पदोन्नति से बाहर हो गए। वहीं 2023 में मदरास हाई कोर्ट ने भी समान निर्णय दिया, जिसके बाद तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। इस बीच झारखंड हाई कोर्ट ने CTET‑धारकों के लिए कुछ लचीलापन दिखाया, पर स्पष्ट नियम नहीं बने। इन सभी उलझनों को अब सुप्रीम कोर्ट ने एक बार में साफ कर दिया है।

UPPSC LT ग्रेड पदों पर चल रही कानूनी लड़ाई

अब सवाल आया कि क्या उत्तर प्रदेश में UPPSC द्वारा विज्ञापित LT ग्रेड (लेक्सर‑टेचर) पदों के लिए केवल B.Ed ही पर्याप्त होगा या CTET भी अनिवार्य है। इस मुद्दे पर 11 सितंबर 2025 को एक विशेष सुनवाई तय हुई है। उम्मीदवारों के समूह का दावा है कि पूर्व पदों में CTET का उल्लेख नहीं था, इसलिए मौजूदा विज्ञापन में भी यह शर्त नहीं होनी चाहिए। दूसरी ओर राज्य का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार सभी सरकारी‑स्कूल में TET अनिवार्य है, चाहे वह पद कोई भी क्यों न हो।

इसी बीच TGT PGT Adda247 ने 23 अगस्त 2025 को एक वीडियो अपडेट जारी किया, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि B.Ed के साथ CTET न पास करने वाले उम्मीदवारों को अब प्रोन्नति या नियुक्ति में कठिनाई का सामना करना पड़ेगा।

पदोन्नति, सेवानिवृत्ति और वेतन पर व्यावहारिक प्रभाव

नयी गाइडलाइन का सबसे बड़ा असर पदोन्नति प्रक्रिया पर पड़ेगा। पहले जहाँ सेवा‑सालों के आधार पर स्वचालित रूप से सीनियर लेवल में बढ़ोतरी होती थी, अब हर शिक्षक को CTET पास करना होगा। यदि दो साल में पास नहीं होता, तो सरकार उन्हें बिना किसी अतिरिक्त पेंशन के रीटायर कर देगी, पर वे अभी भी अपने मूल वेतन की अंतिम राशि प्राप्त करेंगे।

सेवानिवृत्ति के निकट वाले शिक्षकों के लिए यह एक राहत है—उन्हें परीक्षा नहीं देनी पड़ेगी, पर उनके प्रोन्नति‑अवसर रुक जाएंगे। इस कारण कई अनुभवी शिक्षकों ने पहले ही दो साल के भीतर परीक्षा देने की तैयारी शुरू कर दी है, क्योंकि आगे चलकर यदि वे पास नहीं हुए तो उन्हें सेवा‑कटौती का सामना करना पड़ सकता है।

भविष्य की संभावनाएँ और कार्यान्वयन की चुनौतियाँ

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य‑स्तर के शिक्षा विभागों को स्पष्ट नियमावली बनानी होगी, जिसमें "योग्य सेवा अवधि" की गणना कैसे होगी, यह स्पष्ट किया जाएगा। कई राज्य अब अपने नियमों को संशोधित करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि पुराने शिक्षकों को अनावश्यक तनाव से बचाया जा सके।

एक प्रमुख चुनौती यह है कि CTET की परीक्षा केंद्रों की उपलब्धता सीमित है। इसलिये कई राज्य सरकारें अतिरिक्त केंद्र खोलने या ऑनलाइन मॉड्यूल पेश करने की योजना बना रहे हैं। यदि ये उपाय नहीं किए गए, तो दो‑तीन साल में लाखों शिक्षक परीक्षा देने के दबाव में आ जाएंगे, जो शिक्षा‑गुणवत्ता को भी प्रभावित कर सकता है।

निष्कर्ष: क्या शिक्षकों का भविष्य अब सुरक्षित है?

सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्पष्ट दिशा‑निर्देश देता है, पर कार्यान्वयन में दखल‑अंदाज़ी का जोखिम बना रहेगा। यदि राज्य‑स्तर के विभाग समय पर नियमावली प्रकाशित कर लेते हैं और परीक्षा‑सुविधाएँ बढ़ा लेते हैं, तो शिक्षक‑समुदाय को बड़े बदलावों से निपटना आसान होगा। फिलहाल, उत्तर प्रदेश में 11 सितंबर की सुनवाई का परिणाम ही यह तय करेगा कि LT ग्रेड में CTET अनिवार्य होगा या नहीं। इस दौरान उम्मीदवारों को सलाह है कि वे दोनों विकल्पों (B.Ed और CTET) की तैयारी साथ‑साथ रखें, ताकि कोई मौका हाथ से न जाए।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

CTET पास न करने वाले शिक्षक को कितनी समय सीमा दी गई है?

सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि 1 सितंबर 2025 के बाद सेवा में रहने वाले और पाँच साल से अधिक सेवानिवृत्ति‑समय बचा रखने वाले शिक्षकों को दो साल के भीतर CTET/ TET पास करना अनिवार्य है, नहीं तो वे अनिवार्य सेवानिवृत्ति या पदच्युत हो सकते हैं।

क्या पाँच साल से कम समय बचा होने वाले शिक्षक को प्रोन्नति मिल सकती है?

इन शिक्षकों को परीक्षा देनी नहीं पड़ेगी, पर प्रोन्नति के लिए CTET पास करना आवश्यक होगा। बिना परीक्षा के उन्हें केवल मौजूदा पद पर ही रखा जाएगा।

UPPSC के LT ग्रेड पदों में B.Ed ही पर्याप्त है या CTET भी जरूरी?

वर्तमान में यह मुद्दा अदालत में चल रहा है। यदि सुप्रीम कोर्ट का दिशा‑निर्देश लागू होता है, तो CTET भी अनिवार्य माना जाएगा। लेकिन अंतिम निर्णय 11 सितंबर 2025 की सुनवाई पर निर्भर करेगा।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश से राज्य‑स्तर की नीतियों पर क्या असर पड़ेगा?

राज्य सरकारों को अब दो साल के भीतर स्पष्ट नियम बनाना होगा, जिससे शिक्षक अपनी योग्य सेवा अवधि पूरी कर सकें। कई राज्यों ने परीक्षा‑केंद्रों की संख्या बढ़ाने और ऑनलाइन प्रैक्टिस मॉड्यूल पेश करने की योजना बनाई है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला KVS भर्ती पर कैसे लागू होगा?

KVS (केंद्रीय विद्यालय संगठन) ने पहले से ही CTET को अनिवार्य बताया था। अब इस फैसले से सभी नई नियुक्तियों में CTET अनिवार्य रहेगा, और मौजूदा कर्मचारी भी दो साल के भीतर परीक्षा पास करने के लिए बाध्य होंगे।

Jonali Das
Jonali Das

मैं समाचार की विशेषज्ञ हूँ और दैनिक समाचार भारत पर लेखन करने में मेरी विशेष रुचि है। मुझे नवीनतम घटनाओं पर विस्तार से लिखना और समाज को सूचित रखना पसंद है।

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टिप्पणि (1)
  • Abhishek maurya
    Abhishek maurya

    अक्तूबर 25, 2025 AT 20:56 अपराह्न

    सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले को समझने के लिए हमें शिक्षा नीति के मूलभूत सिद्धांतों को फिर से देखना होगा। यह सिर्फ एक कानूनी आदेश नहीं, बल्कि एक सामाजिक परिवर्तन का संकेत है। CTET को अनिवार्य बनाकर न्यायपालिका ने शिक्षकों की पेशेवर योग्यता को एक सशर्त मानक के रूप में स्थापित किया है। अब हर शिक्षक को परीक्षा देना अनिवार्य हो गया है, चाहे वह पहले नियुक्त हो या बाद में। यह निर्णय उन हजारों शिक्षकों के भविष्य को सीधे प्रभावित करेगा जो अपने करियर की दिशा को लेकर अनिश्चितता में हैं। दो साल की ग्रेस‑पिरियड भी सरकार को अतिरिक्त जिम्मेदारी देती है कि वह इस बदलाव को सुगमता से लागू करे। यदि इस अवधि में शिक्षक पास नहीं होते, तो उन्हें सेवा‑कटौती या अनिवार्य सेवानिवृत्ति का सामना करना पड़ेगा, जो निस्संदेह उनके जीवन में बड़ा झटका हो सकता है। वहीं, सेवानिवृत्ति के निकट वाले शिक्षकों को इस कठोर नियम से कुछ राहत मिलती है, पर उनका प्रोन्नति अवसर रुक जाता है। यह न्यायिक आदेश शिक्षा के मानकों को ऊँचा करने की दिशा में एक कदम है, पर साथ ही यह प्रशासनिक चुनौतियों को भी बढ़ाता है। कई राज्य अब परीक्षा केंद्रों की कमी को दूर करने के लिए ऑनलाइन मॉड्यूल पेश करने की योजना बना रहे हैं, पर यह योजना कितनी व्यावहारिक होगी, यह देखना बाकी है। इस नियम के प्रभाव को पूरी तरह समझने के लिए हमें यह भी देखना होगा कि शिक्षकों की तैयारी की स्थिति क्या है। वर्तमान में कई शिक्षक पहले से ही दो साल के भीतर CTET पास करने के लिए कोचिंग की तलाश में लगे हैं। इस प्रक्रिया में निजी संस्थानों का दबदबा बढ़ रहा है, जिससे शिक्षा के व्यावसायीकरण की संभावना भी उत्पन्न हो रही है। अतिरिक्त रूप से, राज्य स्तर पर विभिन्न हाई कोर्टों के निर्णयों में अब एक समानता लाने की जरूरत है, ताकि कानूनी जटिलताएँ कम हों। अंततः, यह फैसला यदि सही ढंग से लागू किया गया तो शिक्षक वर्ग की योग्यता में वृद्धि कर सकता है, पर अगर निपटान में लापरवाही हुई तो इसका उल्टा प्रभाव भी पड़ सकता है।

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